जीवन की आपा धापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी ये सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना, उसमें क्या बुरा भला...
बस इसी आपा धापी से बचते बचाते, दो पल बाँट सकने की चाह लिये कुछ सुनने और कुछ सुनाने कि कोशिश...
Thursday, September 18, 2008
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